Aahat
Saturday, December 26, 2020
Saturday, July 25, 2020
खुली आँखों से जलता मेहताब देखोगे
सर्द हवाओं से लड़ते चराग़ देखोगे
अभी तो बस कलम उठायी है
स्याही में बहते सैलाब देखोगे
- अजय गौतम 'आहत '
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Friday, July 17, 2020
अन्तर्यात्री
विचार
मथते रहते है
बात करते रहते हैं
मस्तिष्क के पता नही किस कोने से उठकर
दावानल की तरह पूरा जंगल घेर लेते हैं।
समुद्र की शांत थपकी देती लहरों जैसे,
सरल आवृत्ति गति
झूले की तरह हिलोरें लेते
गहराई तक जाकर टटोलते है
अरे बची है कुछ ऊर्जा,
और खंगालूँ?
सारी अंतःशक्ति सोखकर
सुनामी की तरह निकलते हैं
बाहर शांत
अंदर ऊंची लहरों के प्रचंड वेग
मस्तिष्क लांघकर
स्वयंभू सोचते है
भस्म कर दूं पूंजीवाद
उड़ा दूँ साम्यवाद के परखच्चे
नष्ट कर दूं जाति
दफन कर दूं जातिवाद
काट दूं बेड़ियां स्त्रियों की
सरल कर दूं सब वाद।
लहर छलांग मार
आकाश गंगा हो जाना चाहती है
जैसे बच्चे लंगड़ी उछलकर खेलते हैं
मंगल, शनि, प्लूटो
सबको वैसे ही टापूं,
साक्षात बुद्ध के साथ ध्यान लगाऊं
ज्ञान लूं।
कोपरनिकस का हाथ चूम लूं
गैलीलियो की आंख चूम लूं
न्यूटन और आइंस्टाइन दोनो को
एक साथ बिठाकर तर्क करूँ
या चुपचाप मंत्रमुग्ध होकर उनको
बहस करते देखूँ।
हॉकिंग का व्हीलचेयर
मुझे टाइम-मशीन लगता है,
उसमे बैठकर
अम्बेडकर की जीवन यात्रा
देखूं ।
विचार उड़ने देते हैं
सोने नहीं देते।
-- अजय गौतम 'आहत'
पंखुड़ियाँ बुक के लिए यहां क्लिक करें👇
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मथते रहते है
बात करते रहते हैं
मस्तिष्क के पता नही किस कोने से उठकर
दावानल की तरह पूरा जंगल घेर लेते हैं।
समुद्र की शांत थपकी देती लहरों जैसे,
सरल आवृत्ति गति
झूले की तरह हिलोरें लेते
गहराई तक जाकर टटोलते है
अरे बची है कुछ ऊर्जा,
और खंगालूँ?
सारी अंतःशक्ति सोखकर
सुनामी की तरह निकलते हैं
बाहर शांत
अंदर ऊंची लहरों के प्रचंड वेग
मस्तिष्क लांघकर
स्वयंभू सोचते है
भस्म कर दूं पूंजीवाद
उड़ा दूँ साम्यवाद के परखच्चे
नष्ट कर दूं जाति
दफन कर दूं जातिवाद
काट दूं बेड़ियां स्त्रियों की
सरल कर दूं सब वाद।
लहर छलांग मार
आकाश गंगा हो जाना चाहती है
जैसे बच्चे लंगड़ी उछलकर खेलते हैं
मंगल, शनि, प्लूटो
सबको वैसे ही टापूं,
साक्षात बुद्ध के साथ ध्यान लगाऊं
ज्ञान लूं।
कोपरनिकस का हाथ चूम लूं
गैलीलियो की आंख चूम लूं
न्यूटन और आइंस्टाइन दोनो को
एक साथ बिठाकर तर्क करूँ
या चुपचाप मंत्रमुग्ध होकर उनको
बहस करते देखूँ।
हॉकिंग का व्हीलचेयर
मुझे टाइम-मशीन लगता है,
उसमे बैठकर
अम्बेडकर की जीवन यात्रा
देखूं ।
विचार उड़ने देते हैं
सोने नहीं देते।
-- अजय गौतम 'आहत'
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Wednesday, July 1, 2020
पंखुड़ियाँ - My Book
दोस्तों मेरी प्रथम किताब "पंखुड़ियाँ" प्रकाशित हो चुकी है। आप लोगो की ढेर सारी बधाईयों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। लॉक डाउन के कारण कई मित्रों को डिलीवरी थोड़ी देर से मिली। लेकिन अब इसकी दिक्कत दूर हो चुकी है।
कई मित्रों का फेसबुक और अमेज़न पर फ़ीडबैक और review भी मिला। बहुत शुक्रिया। आपको पसंद आई।🙏
'पंखुड़ियाँ' काव्य-संकलन है। जैसे सागर कभी उथल-पुथल तो कभी चिर-शांत रहता है, कभी तूफानों को समेटे रहता है तो कभी मद्धिम शीतलता को ओढ़े रहता है। ठीक वैसे ही प्रेम रूपी सागर जड़- चेतन के विभिन्न आयामों से गुजरता है।
पंखुड़ियाँ इस सागर में डूबने, ठहरने, टूटने और उबरने की प्रक्रिया का संकलन है। एक यात्रा है। ये यात्रा शायद हर कोई करता है । कभी न कभी। इन यात्रा के जल-चिन्हों को शब्दांकित करने का सूक्ष्म प्रयास है 'पंखुड़ियाँ'.
जब आप पढ़ेंगे तो ये शब्द, अनुभव, अभिव्यक्ति, ये किताब सब आपके हो जायेंगे। आपके अपने।
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इस ब्लॉग पर साइड में मेरे फेसबुक अकाउंट और पेज का भी लिंक है। Love to contact You.
दिल के मारियाना ट्रेंच की तलहटियों से धन्यवाद !❤️
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Monday, June 8, 2020
गज़ल
दूर है तो क्या दिल से तो करीब है
जाने क्या क्या बहाने बनाते हैं लोग
अजब सी खामोशी है तेरे शहर में
दरख्तों से झांक छिप जाते हैं लोग
वो भूखा दो जून की रोटी मांगता है
उसी का गला क्यूं दबाते है लोग
वोट दिया है तो हिसाब मांग ले
कौन है जिसको बचाते हैं लोग
चिड़ियों को सलाह से अब कोई न वास्ता
सैय्याद को भी बागबां बताते हैं लोग ।
--- अजय गौतम 'आहत'
Tuesday, June 2, 2020
स्वच्छंद
ख्याल करूँ
या फिसल जाऊं
बवाल करूँ
या संभल जाऊं
दुनिया के सब भंडारे
नंगी दुनिया ढक तन सारे
चिल्लम चिल्ली चारो ओर
कौन सुने मन का शोर
भाग रहा कौन गोलाकार
परिधि परिधि कुलांचे मार
त्रिज्या जितनी दूरी है
कितना भी चल ले 2πR.
मेरा जूता मेरा पहिया
सिग्नल सिग्नल क्यूं रुकता जाऊं
चित पानी चित नदिया
पाटों में क्यूं बहता जाऊं
आंखें-आंखें लाल लाल
लहू-लहू करे सवाल
अंदर की जो ज्वाला है
ज्वाला नहीं ये हाला है
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या
फिर किसका किससे पाला है
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात
ये कैसा गड़बड़झाला है
इंसान जने इंसान बने
ऊपर किसको बिठाला है
कदम कदम क्या बंधन है
जस मकड़ी का जाला है
समझना चाहूँ छंदमुक्त हो जाऊँ
इससे मुक्ति होती,
या फिसल जाऊं
बवाल करूँ
या संभल जाऊं
दुनिया के सब भंडारे
नंगी दुनिया ढक तन सारे
चिल्लम चिल्ली चारो ओर
कौन सुने मन का शोर
भाग रहा कौन गोलाकार
परिधि परिधि कुलांचे मार
त्रिज्या जितनी दूरी है
कितना भी चल ले 2πR.
मेरा जूता मेरा पहिया
सिग्नल सिग्नल क्यूं रुकता जाऊं
चित पानी चित नदिया
पाटों में क्यूं बहता जाऊं
आंखें-आंखें लाल लाल
लहू-लहू करे सवाल
अंदर की जो ज्वाला है
ज्वाला नहीं ये हाला है
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या
फिर किसका किससे पाला है
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात
ये कैसा गड़बड़झाला है
इंसान जने इंसान बने
ऊपर किसको बिठाला है
कदम कदम क्या बंधन है
जस मकड़ी का जाला है
समझना चाहूँ छंदमुक्त हो जाऊँ
इससे मुक्ति होती,
पर एक ही बात समझ में आयी
नेति नेति, नेति नेति ।
-- अजय गौतम 'आहत'
(जने -जनना-पैदा करना)
नेति नेति, नेति नेति ।
-- अजय गौतम 'आहत'
(जने -जनना-पैदा करना)
Friday, April 28, 2017
सात पोहे
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय ।
न्यूज़ में हॉनर किलिंग पढ़ा, प्रेम कभो न होय ।।
मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोइ ।
संसद में सोइ के जागौ जाग जाग के सोइ ।।
कहत नटत रीझत खिजत मिलत खिलत लजियात ।
भरे टॉकीज़ में पकड़े डैडी बस दे लातम-लात ।।
कुंभ में जल जल में कुंभ बाहर भीतर पानी
फूटा कुंभ डेढ़ सौ नुकसान औ कमरा में बस पानी पानी
बड़े बड़ाई न करे बड़े न बोले बोल ।
पहले सर्कास्टिक कमेंट लिखें बाद में लिख दे लोल ।।
करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान ।
फेल भये अस कूटा गयेन हथवा गोड़वा सुजान ।।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
भैया एक पालक पनीर मलाई कोफ़्ता चार बटर नान दो मिस्सी मिक्स रायता और स्टार्टर में सूप ।।
-- अजय गौतम 'आहत'
नोट: पहली पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवियों के दोहे की हैं। जस्ट फ़ॉर फन !
न्यूज़ में हॉनर किलिंग पढ़ा, प्रेम कभो न होय ।।
मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोइ ।
संसद में सोइ के जागौ जाग जाग के सोइ ।।
कहत नटत रीझत खिजत मिलत खिलत लजियात ।
भरे टॉकीज़ में पकड़े डैडी बस दे लातम-लात ।।
कुंभ में जल जल में कुंभ बाहर भीतर पानी
फूटा कुंभ डेढ़ सौ नुकसान औ कमरा में बस पानी पानी
बड़े बड़ाई न करे बड़े न बोले बोल ।
पहले सर्कास्टिक कमेंट लिखें बाद में लिख दे लोल ।।
करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान ।
फेल भये अस कूटा गयेन हथवा गोड़वा सुजान ।।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
भैया एक पालक पनीर मलाई कोफ़्ता चार बटर नान दो मिस्सी मिक्स रायता और स्टार्टर में सूप ।।
-- अजय गौतम 'आहत'
नोट: पहली पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवियों के दोहे की हैं। जस्ट फ़ॉर फन !
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