Wednesday, July 1, 2020

पंखुड़ियाँ - My Book

दोस्तों मेरी प्रथम किताब   "पंखुड़ियाँ"   प्रकाशित हो चुकी है। आप लोगो की ढेर सारी बधाईयों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।  लॉक डाउन के कारण कई मित्रों को डिलीवरी थोड़ी देर से मिली। लेकिन अब इसकी दिक्कत दूर हो चुकी है। 
कई मित्रों का फेसबुक और अमेज़न पर फ़ीडबैक और review भी मिला। बहुत शुक्रिया। आपको पसंद आई।🙏 

'पंखुड़ियाँ'  काव्य-संकलन है। जैसे सागर  कभी उथल-पुथल तो कभी चिर-शांत रहता है, कभी तूफानों को समेटे रहता है तो कभी मद्धिम शीतलता को ओढ़े रहता है। ठीक वैसे ही प्रेम रूपी सागर जड़- चेतन के विभिन्न आयामों से गुजरता है।  
पंखुड़ियाँ इस सागर में डूबने, ठहरने, टूटने और उबरने की प्रक्रिया का संकलन है। एक यात्रा है। ये यात्रा शायद हर कोई करता है । कभी न कभी। इन यात्रा के जल-चिन्हों  को शब्दांकित करने का सूक्ष्म प्रयास है 'पंखुड़ियाँ'. 

जब आप पढ़ेंगे तो ये शब्द, अनुभव, अभिव्यक्ति, ये किताब सब आपके हो जायेंगे। आपके अपने। 

प्रिय मित्रों दिए गए लिंक पर क्लिक करके Amazon या NotionPress से अपनी प्रति बुक कराएं। आप लोगों के फीडबैक का बेसब्री से इंतजार रहेगा। 
इस ब्लॉग पर साइड में मेरे फेसबुक अकाउंट और पेज का भी लिंक है। Love to contact You.

दिल के मारियाना ट्रेंच की तलहटियों से धन्यवाद !❤️

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Monday, June 8, 2020

गज़ल

दूर है तो क्या दिल से तो करीब है
जाने क्या क्या बहाने बनाते हैं लोग

अजब सी खामोशी है तेरे शहर में
दरख्तों से झांक छिप जाते हैं लोग

वो भूखा दो जून की रोटी मांगता है
उसी का गला क्यूं दबाते है लोग

वोट दिया है तो हिसाब मांग ले
कौन है जिसको बचाते हैं लोग

चिड़ियों को सलाह से अब कोई न वास्ता
सैय्याद को भी बागबां बताते हैं लोग ।

               --- अजय गौतम 'आहत'

Tuesday, June 2, 2020

स्वच्छंद

ख्याल करूँ
या फिसल जाऊं
बवाल करूँ
या संभल जाऊं

दुनिया के सब भंडारे
नंगी दुनिया ढक तन सारे
चिल्लम चिल्ली चारो ओर
कौन सुने मन का शोर

भाग रहा कौन गोलाकार
परिधि परिधि कुलांचे मार
त्रिज्या जितनी दूरी है
कितना भी चल ले 2πR.

मेरा जूता मेरा पहिया
सिग्नल सिग्नल क्यूं रुकता जाऊं
चित पानी चित नदिया
पाटों में क्यूं बहता जाऊं

आंखें-आंखें लाल लाल
लहू-लहू करे सवाल
अंदर की जो ज्वाला है
ज्वाला नहीं ये हाला है

ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या
फिर किसका किससे पाला है
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात
ये कैसा गड़बड़झाला है

इंसान जने इंसान बने
ऊपर किसको बिठाला है
कदम कदम क्या बंधन है
जस मकड़ी का जाला है

समझना चाहूँ छंदमुक्त हो जाऊँ
इससे मुक्ति होती,
पर एक ही बात समझ में आयी
नेति नेति, नेति नेति ।


-- अजय गौतम 'आहत'



(जने -जनना-पैदा करना)


Friday, April 28, 2017

सात पोहे

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय ।
न्यूज़ में हॉनर किलिंग पढ़ा, प्रेम कभो न होय ।।

मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोइ ।
संसद में सोइ के जागौ जाग जाग के सोइ ।।

कहत नटत रीझत खिजत मिलत खिलत लजियात ।
भरे टॉकीज़ में पकड़े डैडी बस दे लातम-लात ।।

कुंभ में जल जल में कुंभ बाहर भीतर पानी
फूटा कुंभ डेढ़ सौ नुकसान औ कमरा में बस पानी पानी

बड़े बड़ाई न करे बड़े न बोले बोल ।
पहले सर्कास्टिक कमेंट लिखें बाद में लिख दे लोल ।।

करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान ।
फेल भये अस कूटा गयेन हथवा गोड़वा सुजान ।।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
भैया एक पालक पनीर मलाई कोफ़्ता चार बटर नान दो मिस्सी मिक्स रायता और स्टार्टर में सूप ।।

                                   -- अजय गौतम 'आहत'




नोट: पहली पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवियों के दोहे की हैं। जस्ट फ़ॉर फन !

Friday, February 20, 2015

अशर्फियाँ सब सड़क पर बिखरा दो
शराफत सब दीवार में चुनवा दो
मुझे जल जल कर कुंदन नहीं बनना
भर भर कर प्याला बस ज़ाम पिला दो ..


                   --- अजय गौतम 'आहत ' 

Monday, September 29, 2014

सर्वविनाश

तुम प्रकाश उपासक हो
मैं अंधकार का शासक हूँ

तुम पर्वत शीतल शीतल
मैं आग उगलता ज्वाला हूँ
तुम हिमनदी से उज्जवल
मैं एकदम काला काला हूँ

.........
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-- अजय गौतम 'आहत '

Sunday, April 6, 2014

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये

तुम कहो या चुप ही रहो
बात दिल तक जरा पहुंचा दीजिये
हम सदियों से प्यार करते रहे
प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये  ।

एक कुमुदुनी दिनभर परेशान है
आस का सूरज ढलता गया
कुछ ऐसी सियासी हवाएं चली
उसका भंवरा कहीं दूर उड़ता गया,
हम तुम दोनों जुदा हो गए
ऐसी बातों को न हवा दीजिये

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये ।

एक मछली किनारे पे आके गिरी
उसका साथी था जाल में कहीं
बोली मुझको भी ले चलो आदमी
उसके पैरों पर वो रोने लगी,
तुझको मुझसे मिलने से रोके
ऐसी जालों को फ़ना कीजिये

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये । 

रेत पर जो थे पाँव के निशां
मेरे पाँव उस पर पड़ते गए
वो हसीं वादियां वो हसीं पल
सारे  रेत में बदलते गए
रेत भी वक़्त बताने लगे
अपने हाथों से रेत गिरा दीजिये

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये ।

देखो ये घटायें  उदास हैं
परिंदे भी सब चुप से हुए
तुम जो थोड़े से हुए ग़मगीन
फूल सारे  मुरझा से गए
ये रोते हुए सब हंसने लगे
आप थोडा सा मुस्कुरा दीजिये

हम सदियों से प्यार करते रहे
प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये ।


                      ---- अजय गौतम 'आहत '

Thursday, March 6, 2014

दिल करता है पी जाऊं
मेरी ख्वाहिशें
मेरे अरमान..
आज साकी बना कोई  ऐसा ज़ाम..

                 --  अजय गौतम 'आहत '