Sunday, December 22, 2013

सोचेंगे हम



इश्क की जालसाजी में क्या खोया क्या पाया
फुरकत में जब फुरसत होगी तो सोचेंगे हम..

ये सिगरेट के धुंए के छल्ले हैं या माथे की लकीरें
इक  कश तो गहरी लेने दे तो सोचेंगे हम..

शराब में नशा तेरे इश्क से कम तो नहीं
इक घूंट तो ज़रा चढ़ने दे तो सोचेंगे हम..

ये आँखों की बेरहमी है या इश्क़ का ग़म
ज़रा आँसूं तो थमने दे तो सोचेंगे हम..

भागते रहे उम्र भर मंजिल न मिली क्यूँ
थकेंगे जब कदम 'आहत'  तो सोचेंगे हम..

   

                                 --- अजय गौतम 'आहत '

(फुरकत =  Separation )

10 comments:

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  2. kafi dard h kavita ki panktiyon me.. Lagta h jaise apbiti hi ho.. Btw awsme lines - Vandana verma :)

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  3. @Ruhi ...apse mai tin shabd bolna chahti hu ajay ye poem padh kr.. Awsme! Awsme! Awsme!

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  4. Kaahe itna dimaag lagata hai .......

    waise mast likha hai :)

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