Wednesday, February 5, 2014

मेरा ही तो नाम था


कभी दिल पर चोट सह गए
कभी रात भर आराम था
वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही  नाम था ।

कागज़ पर स्याही की तुम
धड़कने पढ़ते गए
लफ़्ज़ों को बार बार होंठो से चूमते गए
वो चिट्ठियां सब मेरी थी
बस नाम ही गुमनाम था..

वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही तो नाम था ।

हर रोज़ तेरे दर पर
गुलाब आते रहे
तुम जहाँ जहाँ गए पलके बिछाते रहे
तुझे इल्म भी न हुआ
और मैं आशिक़ बदनाम था..

वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही  नाम था ।

कभी दूर ले गए कदम
कभी पास खींच लाये तुम
वो जो अरसे बाद मिला था मैं
वो मेरा आखिरी सलाम था..

वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही नाम था ।

                          ----  अजय गौतम 'आहत '

Sunday, December 22, 2013

सोचेंगे हम



इश्क की जालसाजी में क्या खोया क्या पाया
फुरकत में जब फुरसत होगी तो सोचेंगे हम..

ये सिगरेट के धुंए के छल्ले हैं या माथे की लकीरें
इक  कश तो गहरी लेने दे तो सोचेंगे हम..

शराब में नशा तेरे इश्क से कम तो नहीं
इक घूंट तो ज़रा चढ़ने दे तो सोचेंगे हम..

ये आँखों की बेरहमी है या इश्क़ का ग़म
ज़रा आँसूं तो थमने दे तो सोचेंगे हम..

भागते रहे उम्र भर मंजिल न मिली क्यूँ
थकेंगे जब कदम 'आहत'  तो सोचेंगे हम..

   

                                 --- अजय गौतम 'आहत '

(फुरकत =  Separation )

Tuesday, December 17, 2013

प्रेम पत्र

प्रिय,
मुझे आज भी याद है वो वक़्त जब मैं अपने इश्कबाज़ दोस्तों के बीच खुद को minority महसूस करता था । फिर एक दिन तुम सामने से आई । तुम्हारी progressive चाल देखकर मैं अपना हाल भूल गया । पहली बार जब तुमसे बात हुई तो तुम्हारे  liberal thoughts सुनके मेरा पूरा Constitution हिल गया । तब से लेकर आज तक, सिर्फ तुम्हे इम्प्रेस करने के लिए, खुद में न जाने कितने amendments कर चुका हूँ। 

तुम्हारे विचारों को जानने हेतु मैंने कुछ सप्ताह पहले लिखित रूप से  RTI file किया । किन्तु न जाने तुम किस secrecy की दुहाई देकर मेरा आवेदन टाल रही हो । प्रिय तुम किस सोच में डूबी हो । तुम्हे अपने democratic दिल का  President बना के रखूँगा और मैं तुम्हारा PM बन के रहूँगा । तुम्हारे नाम से मेरा काम होगा और मेरे काम से तुम्हारा नाम । 

तुम्हारी तरफ से कोई संकेत न आने से , मैंने हिम्मत करके तुम्हारे दिल के दरबार में  प्यार का Petition डाल ही दिया । सोचा जो होगा सो होगा । पर कब तक सनी देओल की तरह तारीख पर तारीख मिलती रहेगी My Doll !   कब लाओगी Reforms अपने  Judicial  System में | कल तुम्हारे घर का नौकर बाज़ार में मिला था । सुना है तुम्हारे  खूसट पिताजी किसी लोकपाल से तुम्हारी शादी भिड़ाने की सोच रहे हैं । प्रिय जल्दी ही अपना निर्णय मुझे बताओ । कहीं तुम्हारी माताजी ने भी लोकू को pass कर दिया तो अनर्थ हो जायेगा ।

प्रिये तुम इतनी hot हो कि मैंने प्यार से तुम्हारा नाम global warming रख दिया है (blush) | आजकल तो मेरे दोस्त भी मुझे थर्मामीटर कह के चिढ़ाते हैं । Darling ये ख़त मैं तुम्हारे नौकर के हाथ भिजवा रहा हूँ । कल इस ख़त का जवाब जरूर भेज देना ।

                                      मुआह मुआअहह मुआआह्ह्ह्ह ..
                                                                                                                                   
                                                                                                     सिर्फ तुम्हारा
                                                                                                   पागल  प्रेमी (blush)

Friday, October 11, 2013

जरा प्रहार करना

समय है अभी समर है अभी
तेरी दोस्ती का असर है अभी
बहुत हुआ छुप छुप कर वार करना
हूँ सामने अब मित्र जरा प्रहार करना ..
             
                -- अजय गौतम ' आहत '

Tuesday, July 23, 2013

जो तेरी बात चले ..

मुझको याद है वो राहें जो तेरे साथ चले
फूलों को भी खुशबू आये जो तेरी बात चले

कश्मकश में रहता हूँ ख़त लिखू  न लिखू
कलम खुद ही चल जाये जो तेरी बात चले


. . . . . . .







                        ----  अजय गौतम ' आहत '

Sunday, October 14, 2012

जुदाई

दुपट्टे का लहराना है या ख़त भेजा हवाओं में,
मैं अपना कुछ सबब खोजू तेरी इन अदाओं में

...........


         
                             --- अजय गौतम ' आहत  '

Tuesday, January 24, 2012

तेरे दिल का हाल प्रिये



जब तुम घर से निकलोगे 
पर मुझको न पाओगे 
जब बेचैन निगाहों से
गली का कोना छानोगे
जब तुम यूँ अकेले में 
कोई उदास गीत गुनगुनाओगे, 

जब तुम बात बात पर 
घर पर मिलने आओगे,
पर मुझको न पाओगे

तब मैं पूछूँगा तुझसे तेरे दिल का हाल प्रिये ।
.......



                        ------  अजय गौतम 'आहत'


Tuesday, November 22, 2011

बेवफा

खुदा तारीफ करू क्या तेरे इंसाफ की ,
बेवफा कोई और, तबाह कोई और ...




                                      -----अजय गौतम 'आह़त







Sunday, October 16, 2011

टीस

तुम भी कर सकते थे बयां रुसवाई का सबब,
किसी गैर से सुना तो दुःख होता है ,
कही हर बात दिल की अपना समझ कर,
तूने न समझा तो दुख होता है ,

शहर की गलियों में भटकता ,
पत्तो पत्तो से पता पूछा,
ग़म न होता गर तू देखती न,
 देखकर फेर ली नज़र तो दुःख होता है |

लावारिश आहें चुपके से कभी,
हवाओ में बिखर जाती हैं ,
यूँ तो कोशिश है खुश रहने की,
तेरी बात निकल आयी तो दुःख होता है ,


बारिश  बनकर इतना गिरे,
जितना पानी समंदर में ,
ख्वाहिश नहीं तू भी रोये ग़म में,
पर दुख भी नहीं ज़रा तो दुख होता है |


                                                   ------  अजय गौतम 'आहत'