Monday, September 29, 2014

सर्वविनाश

तुम प्रकाश उपासक हो
मैं अंधकार का शासक हूँ

तुम पर्वत शीतल शीतल
मैं आग उगलता ज्वाला हूँ
तुम हिमनदी से उज्जवल
मैं एकदम काला काला हूँ

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-- अजय गौतम 'आहत '

Sunday, April 6, 2014

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये

तुम कहो या चुप ही रहो
बात दिल तक जरा पहुंचा दीजिये
हम सदियों से प्यार करते रहे
प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये  ।

एक कुमुदुनी दिनभर परेशान है
आस का सूरज ढलता गया
कुछ ऐसी सियासी हवाएं चली
उसका भंवरा कहीं दूर उड़ता गया,
हम तुम दोनों जुदा हो गए
ऐसी बातों को न हवा दीजिये

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये ।

एक मछली किनारे पे आके गिरी
उसका साथी था जाल में कहीं
बोली मुझको भी ले चलो आदमी
उसके पैरों पर वो रोने लगी,
तुझको मुझसे मिलने से रोके
ऐसी जालों को फ़ना कीजिये

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये । 

रेत पर जो थे पाँव के निशां
मेरे पाँव उस पर पड़ते गए
वो हसीं वादियां वो हसीं पल
सारे  रेत में बदलते गए
रेत भी वक़्त बताने लगे
अपने हाथों से रेत गिरा दीजिये

प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये ।

देखो ये घटायें  उदास हैं
परिंदे भी सब चुप से हुए
तुम जो थोड़े से हुए ग़मगीन
फूल सारे  मुरझा से गए
ये रोते हुए सब हंसने लगे
आप थोडा सा मुस्कुरा दीजिये

हम सदियों से प्यार करते रहे
प्यार हमसे भी थोडा जता दीजिये ।


                      ---- अजय गौतम 'आहत '

Thursday, March 6, 2014

दिल करता है पी जाऊं
मेरी ख्वाहिशें
मेरे अरमान..
आज साकी बना कोई  ऐसा ज़ाम..

                 --  अजय गौतम 'आहत '

Wednesday, February 5, 2014

मेरा ही तो नाम था


कभी दिल पर चोट सह गए
कभी रात भर आराम था
वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही  नाम था ।

कागज़ पर स्याही की तुम
धड़कने पढ़ते गए
लफ़्ज़ों को बार बार होंठो से चूमते गए
वो चिट्ठियां सब मेरी थी
बस नाम ही गुमनाम था..

वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही तो नाम था ।

हर रोज़ तेरे दर पर
गुलाब आते रहे
तुम जहाँ जहाँ गए पलके बिछाते रहे
तुझे इल्म भी न हुआ
और मैं आशिक़ बदनाम था..

वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही  नाम था ।

कभी दूर ले गए कदम
कभी पास खींच लाये तुम
वो जो अरसे बाद मिला था मैं
वो मेरा आखिरी सलाम था..

वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही नाम था ।

                          ----  अजय गौतम 'आहत '

Sunday, December 22, 2013

सोचेंगे हम



इश्क की जालसाजी में क्या खोया क्या पाया
फुरकत में जब फुरसत होगी तो सोचेंगे हम..

ये सिगरेट के धुंए के छल्ले हैं या माथे की लकीरें
इक  कश तो गहरी लेने दे तो सोचेंगे हम..

शराब में नशा तेरे इश्क से कम तो नहीं
इक घूंट तो ज़रा चढ़ने दे तो सोचेंगे हम..

ये आँखों की बेरहमी है या इश्क़ का ग़म
ज़रा आँसूं तो थमने दे तो सोचेंगे हम..

भागते रहे उम्र भर मंजिल न मिली क्यूँ
थकेंगे जब कदम 'आहत'  तो सोचेंगे हम..

   

                                 --- अजय गौतम 'आहत '

(फुरकत =  Separation )

Tuesday, December 17, 2013

प्रेम पत्र

प्रिय,
मुझे आज भी याद है वो वक़्त जब मैं अपने इश्कबाज़ दोस्तों के बीच खुद को minority महसूस करता था । फिर एक दिन तुम सामने से आई । तुम्हारी progressive चाल देखकर मैं अपना हाल भूल गया । पहली बार जब तुमसे बात हुई तो तुम्हारे  liberal thoughts सुनके मेरा पूरा Constitution हिल गया । तब से लेकर आज तक, सिर्फ तुम्हे इम्प्रेस करने के लिए, खुद में न जाने कितने amendments कर चुका हूँ। 

तुम्हारे विचारों को जानने हेतु मैंने कुछ सप्ताह पहले लिखित रूप से  RTI file किया । किन्तु न जाने तुम किस secrecy की दुहाई देकर मेरा आवेदन टाल रही हो । प्रिय तुम किस सोच में डूबी हो । तुम्हे अपने democratic दिल का  President बना के रखूँगा और मैं तुम्हारा PM बन के रहूँगा । तुम्हारे नाम से मेरा काम होगा और मेरे काम से तुम्हारा नाम । 

तुम्हारी तरफ से कोई संकेत न आने से , मैंने हिम्मत करके तुम्हारे दिल के दरबार में  प्यार का Petition डाल ही दिया । सोचा जो होगा सो होगा । पर कब तक सनी देओल की तरह तारीख पर तारीख मिलती रहेगी My Doll !   कब लाओगी Reforms अपने  Judicial  System में | कल तुम्हारे घर का नौकर बाज़ार में मिला था । सुना है तुम्हारे  खूसट पिताजी किसी लोकपाल से तुम्हारी शादी भिड़ाने की सोच रहे हैं । प्रिय जल्दी ही अपना निर्णय मुझे बताओ । कहीं तुम्हारी माताजी ने भी लोकू को pass कर दिया तो अनर्थ हो जायेगा ।

प्रिये तुम इतनी hot हो कि मैंने प्यार से तुम्हारा नाम global warming रख दिया है (blush) | आजकल तो मेरे दोस्त भी मुझे थर्मामीटर कह के चिढ़ाते हैं । Darling ये ख़त मैं तुम्हारे नौकर के हाथ भिजवा रहा हूँ । कल इस ख़त का जवाब जरूर भेज देना ।

                                      मुआह मुआअहह मुआआह्ह्ह्ह ..
                                                                                                                                   
                                                                                                     सिर्फ तुम्हारा
                                                                                                   पागल  प्रेमी (blush)

Friday, October 11, 2013

जरा प्रहार करना

समय है अभी समर है अभी
तेरी दोस्ती का असर है अभी
बहुत हुआ छुप छुप कर वार करना
हूँ सामने अब मित्र जरा प्रहार करना ..
             
                -- अजय गौतम ' आहत '

Tuesday, July 23, 2013

जो तेरी बात चले ..

मुझको याद है वो राहें जो तेरे साथ चले
फूलों को भी खुशबू आये जो तेरी बात चले

कश्मकश में रहता हूँ ख़त लिखू  न लिखू
कलम खुद ही चल जाये जो तेरी बात चले


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                        ----  अजय गौतम ' आहत '

Sunday, October 14, 2012

जुदाई

दुपट्टे का लहराना है या ख़त भेजा हवाओं में,
मैं अपना कुछ सबब खोजू तेरी इन अदाओं में

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                             --- अजय गौतम ' आहत  '