तुम भी कर सकते थे बयां रुसवाई का सबब,
किसी गैर से सुना तो दुःख होता है ,
कही हर बात दिल की अपना समझ कर,
तूने न समझा तो दुख होता है ,
शहर की गलियों में भटकता ,
पत्तो पत्तो से पता पूछा,
ग़म न होता गर तू देखती न,
देखकर फेर ली नज़र तो दुःख होता है |
लावारिश आहें चुपके से कभी,
हवाओ में बिखर जाती हैं ,
यूँ तो कोशिश है खुश रहने की,
तेरी बात निकल आयी तो दुःख होता है ,
बारिश बनकर इतना गिरे,
जितना पानी समंदर में ,
ख्वाहिश नहीं तू भी रोये ग़म में,
पर दुख भी नहीं ज़रा तो दुख होता है |
------ अजय गौतम 'आहत'