Sunday, October 16, 2011

टीस

तुम भी कर सकते थे बयां रुसवाई का सबब,
किसी गैर से सुना तो दुःख होता है ,
कही हर बात दिल की अपना समझ कर,
तूने न समझा तो दुख होता है ,

शहर की गलियों में भटकता ,
पत्तो पत्तो से पता पूछा,
ग़म न होता गर तू देखती न,
 देखकर फेर ली नज़र तो दुःख होता है |

लावारिश आहें चुपके से कभी,
हवाओ में बिखर जाती हैं ,
यूँ तो कोशिश है खुश रहने की,
तेरी बात निकल आयी तो दुःख होता है ,


बारिश  बनकर इतना गिरे,
जितना पानी समंदर में ,
ख्वाहिश नहीं तू भी रोये ग़म में,
पर दुख भी नहीं ज़रा तो दुख होता है |


                                                   ------  अजय गौतम 'आहत'

8 comments:

  1. Very Well written.


    ग़म न होता गर तू देखती न, देखकर फेर ली नज़र तो दुःख होता है |

    most impressive line ! jise padh kar kisi bhi pyar karne wale ko dukh hoga !

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  2. "लावारिस आहें चुपके से कभी , हवाओ में बिखर जाती हैं ,
    यूँ तो कोशिश है खुश रहने की, तेरी बात निकल आयी तो दुःख होता है".... this one is brilliant :)

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  3. @ bhartiji dhanyawad..aap jaisa ek sachaa aashiq hi baat ki gehrai samjh sakta hai

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  4. @ siddharth thank u sir.. bas yun hi dil mein kuch khayal gaya ..

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  5. wow...amazing line...so sosso gud....

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  6. ख्वाहिशो में तेरी झलक मिलते ही चेहरे पे मुस्कान आ जाती है,
    आँखे खोलते ही तू ना हो पास, तो दुःख होता है।

    Very deep illustration, well written

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