Monday, June 8, 2020

गज़ल

दूर है तो क्या दिल से तो करीब है
जाने क्या क्या बहाने बनाते हैं लोग

अजब सी खामोशी है तेरे शहर में
दरख्तों से झांक छिप जाते हैं लोग

वो भूखा दो जून की रोटी मांगता है
उसी का गला क्यूं दबाते है लोग

वोट दिया है तो हिसाब मांग ले
कौन है जिसको बचाते हैं लोग

चिड़ियों को सलाह से अब कोई न वास्ता
सैय्याद को भी बागबां बताते हैं लोग ।

               --- अजय गौतम 'आहत'

Tuesday, June 2, 2020

स्वच्छंद

ख्याल करूँ
या फिसल जाऊं
बवाल करूँ
या संभल जाऊं

दुनिया के सब भंडारे
नंगी दुनिया ढक तन सारे
चिल्लम चिल्ली चारो ओर
कौन सुने मन का शोर

भाग रहा कौन गोलाकार
परिधि परिधि कुलांचे मार
त्रिज्या जितनी दूरी है
कितना भी चल ले 2πR.

मेरा जूता मेरा पहिया
सिग्नल सिग्नल क्यूं रुकता जाऊं
चित पानी चित नदिया
पाटों में क्यूं बहता जाऊं

आंखें-आंखें लाल लाल
लहू-लहू करे सवाल
अंदर की जो ज्वाला है
ज्वाला नहीं ये हाला है

ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या
फिर किसका किससे पाला है
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात
ये कैसा गड़बड़झाला है

इंसान जने इंसान बने
ऊपर किसको बिठाला है
कदम कदम क्या बंधन है
जस मकड़ी का जाला है

समझना चाहूँ छंदमुक्त हो जाऊँ
इससे मुक्ति होती,
पर एक ही बात समझ में आयी
नेति नेति, नेति नेति ।


-- अजय गौतम 'आहत'



(जने -जनना-पैदा करना)