कभी दिल पर चोट सह गए
कभी रात भर आराम था
वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही नाम था ।
कागज़ पर स्याही की तुम
धड़कने पढ़ते गए
लफ़्ज़ों को बार बार होंठो से चूमते गए
वो चिट्ठियां सब मेरी थी
बस नाम ही गुमनाम था..
वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही तो नाम था ।
हर रोज़ तेरे दर पर
गुलाब आते रहे
तुम जहाँ जहाँ गए पलके बिछाते रहे
तुझे इल्म भी न हुआ
और मैं आशिक़ बदनाम था..
वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही नाम था ।
कभी दूर ले गए कदम
कभी पास खींच लाये तुम
वो जो अरसे बाद मिला था मैं
वो मेरा आखिरी सलाम था..
वो जो महफ़िल में तुम भूल गए
वो मेरा ही नाम था ।
---- अजय गौतम 'आहत '