दूर है तो क्या दिल से तो करीब है
जाने क्या क्या बहाने बनाते हैं लोग
अजब सी खामोशी है तेरे शहर में
दरख्तों से झांक छिप जाते हैं लोग
वो भूखा दो जून की रोटी मांगता है
उसी का गला क्यूं दबाते है लोग
वोट दिया है तो हिसाब मांग ले
कौन है जिसको बचाते हैं लोग
चिड़ियों को सलाह से अब कोई न वास्ता
सैय्याद को भी बागबां बताते हैं लोग ।
--- अजय गौतम 'आहत'