Friday, July 17, 2020

अन्तर्यात्री

विचार
मथते रहते है
बात करते रहते हैं
मस्तिष्क के पता नही किस कोने से उठकर
दावानल की तरह पूरा जंगल घेर लेते हैं।
समुद्र की शांत थपकी देती लहरों जैसे,
सरल आवृत्ति गति
झूले की तरह हिलोरें लेते
गहराई तक जाकर टटोलते है
अरे बची है कुछ ऊर्जा,
और खंगालूँ?
सारी अंतःशक्ति सोखकर
सुनामी की तरह निकलते हैं
बाहर शांत
अंदर ऊंची लहरों के प्रचंड वेग
मस्तिष्क लांघकर
स्वयंभू सोचते है
भस्म कर दूं पूंजीवाद
उड़ा दूँ साम्यवाद के परखच्चे
नष्ट कर दूं जाति
दफन कर दूं जातिवाद
काट दूं बेड़ियां स्त्रियों की
सरल कर दूं सब वाद।

लहर छलांग मार
आकाश गंगा हो जाना चाहती है
जैसे बच्चे लंगड़ी उछलकर खेलते हैं
मंगल, शनि, प्लूटो
सबको वैसे ही टापूं,
साक्षात बुद्ध के साथ ध्यान लगाऊं
ज्ञान लूं।
कोपरनिकस का हाथ चूम लूं
गैलीलियो की आंख चूम लूं
न्यूटन और आइंस्टाइन दोनो को
एक साथ बिठाकर तर्क करूँ
या चुपचाप मंत्रमुग्ध होकर उनको
बहस करते देखूँ।
हॉकिंग का व्हीलचेयर
मुझे टाइम-मशीन लगता है,
उसमे बैठकर
अम्बेडकर की जीवन यात्रा
देखूं ।

विचार उड़ने देते हैं
सोने नहीं देते।

       -- अजय गौतम 'आहत'


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